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    कार्बनिक खाद के प्रकार एवं उनका किचन गार्डन में उपयोग

    Types of organic fertilizers and their use in kitchen garden


    कार्बनिक खाद के प्रकार एवं उनका किचन गार्डन में उपयोग 

    कार्बनिक या जीवाणविक खाद

    जैसा कि इसके नाम से ज्ञात होता है कि यह खाद जीवों से बनती है तथा इसमें कार्बन की मात्रा अधिक होती है। भारत में अधिकांशतः कार्बनिक खाद का ही प्रयोग किया जाता है, क्योंकि इसे सरलता  से प्राप्त किया जा सकता है। कार्बनिक खाद में मुख्य रूप से तीन पोषक तत्व पाए जाते हैं।

    (1) नाइट्रोजन प्रधान कार्बनिक खाद, 

    (2) फासफोरस प्रधान कार्बनिक खाद तथा 

    (3) पोटाश प्रधान कार्बनिक खाद ।

    1. नाइट्रोजन प्रधान कार्बनिक खाद- इस प्रकार की खाद में नाइट्रोजन की मात्रा फासफोरस और पोटाश से अधिक होती है। इस खाद के मुख्यतः नौ प्रकार होते हैं। (1) गोबर की खाद, (2) मनुष्यों का मल-मूत्र, (3) पक्षियों की विष्ठा, (4) खलियों की खाद, (5) हरी खाद, (6) सूखे तथा हरे पत्तों की खाद, (7) कम्पोस्ट, (8) शहर के कूड़े-करकट की खाद तथा (9) शहरों की मोरियों का पानी।

    गोबर की खाद से हमारा अभिप्राय मात्र गोबर से ही नहीं है, वरन् उस मिश्रण से भी है जिसमें पशुओं का मल-मूत्र और पशु-शालाओं का का घास-पात भी मिला हुआ हो। इन सब को एक साथ ही रखा जाता है। इस प्रकार की खाद का प्रयोग आरम्भ से ही चला आ रहा है। गोबर की खाद के गुण पशु के भोजन पर निर्भर करते हैं। वैसे गाय-बैल की अपेक्षा भेड़-बकरी की खाद श्रेष्ठ मानी जाती है। जिस खाद में घासपात की मात्रा कम होती है तथा जो सूर्य की गरमी व वर्षा के जल से बची हुई होती है, उसे उत्तम माना जाता है। इस प्रकार की खाद को आप स्वयं भी तैयार कर सकते हैं या फिर आसपास के क्षेत्र में पशु-पालकों से प्राप्त कर सकते हैं।

    मनुष्य के मल-मूत्र की खाद बाजार में "पुडरेट" के नाम से बिकती है। यह खाद साग-सब्जियों के लिए अत्युत्तम रहती है। इसे राख या अच्छी मिट्टी के साथ मिश्रित कर भूमि में दिया जाता है, लेकिन इसकी मात्रा गोबर की खाद से आधी होनी चाहिए।

    पक्षियों की विष्ठा के खाद का प्रयोग भी उपयुक्त रहता है, क्योंकि पक्षियों की विष्ठा सरलता से प्राप्त हो जाती है। प्रायः पक्षियों की विष्ठा में 4 प्रतिशत नाइट्रोजन, 2.3 प्रतिशत फासफोरस तथा 1-2 प्रतिशत पोटाश पाया जाता है। विष्ठा को राख या मिट्टी में मिलाकर ही सुखाना चाहिए अन्यथा उसमें उपस्थित पोषक तत्वों का ह्रास हो जाता है। पक्षियों की विष्ठा में सर्वोत्तम विष्ठा चमगादड़ की मानी गई है, क्योंकि इसमें 8 प्रतिशत नाइट्रोजन, 3.8 प्रतिशत फासफोरस तथा 13. प्रतिशत पोटाश जाता है।

    खलियों की खाद खलियों को आम तौर पर पशुओं को खिला कर प्राप्त की जाती है, लेकिन कुछ खली खाने में कड़वी तथा हानिप्रद होती हैं, जिन्हें केवल खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। पशुओं के प्रयोग में आने वाली खली में मूंगफली, कुसुम, सरसों, तिल, रामतिल्ली, नारियल व बिनौला आदि की खली मुख्य हैं। कड़वी व हानिकर खली में करंज, पहुआ, अरंडी तथा नीम की खली मुख्य हैं। आगे कुछ मुख्य खलियों में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की मात्रा का वर्णन किया जा रहा है।

    मंगफली की खली में नाइट्रोजन, फासफोरस तथा पोटाश की मात्रा क्रमश: 7:29 प्रतिशत, 1.53 प्रतिशत तथा 1:33 प्रतिशत होती है। यह शीघ्रता से सड़कर तैयार हो जाती है।

    सरसों की खली का प्रयोग अधिकांश कृषक करते हैं । इसमें नाइट्रोजन, फासफोरस तथा पोटाश की मात्रा क्रमशः 5-6 प्रतिशत, 1.9 प्रतिशत. तथा 1-4 प्रतिशत होती है।

    अरंडी को खली दो प्रकार की होती है। एक छिलकेदार तथा दूसरी बिना छिलकेदार । इसमें नाइट्रोजन, फासफोरस तथा पोटाश की मात्रा क्रमश: 5.0 प्रतिशत, 1.85 प्रतिशत तथा 1.6 प्रतिशत ही होता है, लेकिन इसको सड़कर तैयार होने में अधिक समय लगता है।

    महुआ की खली को सामान्यतः फसल को लगाने के एक से दो माह के पश्चात भूमि में मिलाया जाता है। इसमें नाइट्रोजन, फासफोरस तथा पोटाश की मात्रा क्रमश: 2:51 प्रतिशत, 0.8 प्रतिशत तथा 2.8 प्रतिशत. होती है तथा इसके लिए अधिक समय की आवश्यकता होती है।

    खली वाली खाद को खेत या क्यारी में दो प्रकार से दिया जाता है। (1) खली को काफी बारीक पीस कर मिट्टी में मिला दिया जाता है तथा उसके पश्चात भूमि की खुदाई कर दी जाती है। (2) खली को बारीक पीस कर पानी में घोल लिया जाता है तथा उस मिश्रण को भूमि में मिला दिया जाता है।

    हरी खाद फसल से बची हुई हरी घास-फूस आदि को गड्ढे में दबा देने से तैयार होती है। इसके लिए प्राय: फलीदार फसलें अधिक प्रयोग में लाई जाती हैं। गोबर की खाद की कमी हो जाने के कारण इस प्रकार की खाद का प्रयोग आजकल अधिक होने लगा है। हरी खाद तैयार करने के के लिए आप कोई भी जल्दी उगने वाली घास या फसल काम में ले सकते हैं, लेकिन इतना अवश्य ध्यान रखें कि उस घास की भौतिक, रासायनिक व जीवाणविक दशा अच्छी होनी चाहिए।

    हरी खाद अन्य खादों से सस्ती व भूमि को अधिक मात्रा में नाइट्रोजन देने वाली होती है। इसको मिट्टी में डालने से मिट्टी की भी जल सोखने की क्षमता बढ़ जाती है। साथ ही मिट्टी में खरपतवार भी कम उत्पन्न होते हैं। एक बार भूमि में इसका प्रयोग करने पर इसका प्रभाव करीब लगभग 4 से 6 वर्षों तक बना रहता है। साथ ही क्यारी की भौतिक व रासायनिक स्थिति भी उत्तम बनी रहती है।

    सूखे पत्तों को खाद पतझड़ ऋतु में पेड़ों से झड़ते पत्तों से प्राप्त की जाती है। प्रायः लोग ऐसे पत्तों को जला देते हैं। शायद वे नहीं जानते कि इन्हीं पत्तों से बड़ी उत्तम किस्म की खाद तैयार की जा सकती है । पतझड़ ऋतु के आरम्भ में ही घर के पीछे किसी कोने में एक गड्ढा खोद लेना चाहिए और जैसे ही पेड़ों पर से पत्ते झड़ने आरम्भ हों, उन्हें उस गड्ढे में डालते रहना चाहिए। साथ ही उन पर समय-समय पर मिट्टी व पानी भी डालते रहना चाहिए। ऐसा करने पर पत्तों में शीघ्र ही सड़ांध उत्पन्न हो जाती है और आप खाद के रूप में उसका प्रयोग कर के काफी पैसा बचा सकते हैं।

    सामान्यतः सड़े हुए पत्तों की खाद को गोबर की खाद में 1:1 के अनुपात में मिला कर क्यारियों में दिया जाता है।

    कम्पोस्ट बाग या खेत के सभी प्रकार के कड़े-कचरे, जैसे-हरे व सूखे पत्ते, भूसा, कोमलटहनियां, फसलों की खूटियां आदि के द्वारा एक विशिष्ट रीति से तैयार की जाने वाली खाद को कहते हैं। इनको सड़ाने का तरीका सूखे पत्तों वाली खाद तैयार करने के समान ही है। सड़ते हुए खाद में बराबर थोड़े-थोड़े समय के पश्चात् पानी छिड़कते रहना चाहिए, क्योंकि

    गरमी के कारण जल काफी तेजी से भाप बनकर उड़ता रहता है। अच्छी खाद तैयार करने के लिए छिड़काए जाने वाले जल में 5 प्रतिशत गोबर व 10 प्रतिशत मिट्टी भी मिला देनी चाहिए तथा सड़ते हए खाद को प्रतिमाह उलट-फेर करते रहना चाहिए। इस विधि से खाद 3-4 माह में तैयार हो जाती है।

    शहर के कूड़ा करकट की खाद का प्रयोग भारत में प्राचीन काल से होता आ रहा है। शहर के सभी प्रकार के कड़े-करकट को एक निश्चित स्थान पर एकत्रित किया जाता है जिसे बरसात के मौसम में सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है तथा उसके बाद प्रयोग में लिया जाता है। इस प्रकार की खाद अधिकांशत: नगर निगम वाले बेचते हैं।

    शहर की नालियों का पानी फल वाली फसलों की सिंचाई के लिए सर्वोत्तम होता है, क्योंकि शहर के उस गंदे पानी में भूमि के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व उपयुक्त मात्रा में अवश्य विद्यमान होते हैं।

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