किचन गार्डन में लहसुन के पौधे की देखभाल एवं उसका बिमारियों से बचाव
किचन गार्डन में लहसुन के पौधे की देखभाल एवं उसका बिमारियों से बचाव
देखभाल
बुआई के तुरन्त बाद ही सिंचाई कर देनी चाहिए। यदि वातावरण गरम हो तो 5-7 दिनों के अन्दर से सिंचाई करते रहना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि भूमि में नमी बराबर बनी रहे । नमी न रहने पर कन्दों के विकास में बाधा पड़ती है। कन्द जब पकने लगें तो सिंचाई कम कर देनी चाहिए। अन्तिम सिंचाई फसल की खुदाई से 2-3 दिन पहले करनी चाहिए। ऐसा करने से कन्द सरलता से मिट्टी से निकाले जा सकेंगे।
प्याज़ की फसल की भांति ही लहसुन की भी निराई-गुड़ाई की जाती
है। पौधों के आसपास की मिट्टी को पोला और खरपतवार रहित करते रहना चाहिए। सामान्यतः बुआई के प्रथम दो माह में ही कन्द बनने आरम्भ हो जाते हैं। अतः दो-तीन बार निराई करनी आवश्यक रहती है। खरपतवार को भी बराबर उखाड़ते रहना चाहिए, जिससे पौधों की जड़ों को किसी प्रकार की हानि न पहुंचे।
बीमारियां तथा उनसे बचाव के उपाय
प्याज की तरह ही लहसुन पर भी श्रिप्स नामक कीड़ों का आक्रमण होता है। इनकी रोकथाम के लिए वही कीटनाशक प्रयोग में लाए जाते हैं, जिनका उपयोग प्याज़ के लिए होता है। प्याज की फसल को हानि पहुंचाने वाले–झुलसा और फफूंदी-आदि रोगों से लहसुन की फसल को भी हानि होती है। यदि रोग के आरम्भ में ही बोर्डो-मिश्रण का उपयोग किया जाए तो इससे रोग को रोकने में सफलता मिल सकती है।
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