• New Post

    किस प्रकार की मिट्टी आपके किचन गार्डन के लिए उपुक्त होती है

    What type of soil is suitable for your kitchen garden


    किस प्रकार की मिट्टी आपके किचन गार्डन के लिए उपुक्त होती है  

    कणों के आधार पर भी भूमि का वर्गीकरण किया जाता है। कणों के आकार, माप तथा स्थूलता के आधार पर भूमि को निम्नलिखित वर्गों में बांटा जा सकता है। 

    1. बलुई भूमि,

    2. बलुई दोमट, 

    3. दोमट,

    4. दोमट मटियार, 

    5. मटियार,

    6. चिकनी तथा 

    7. पथरीली। 

    1. बलुई भूमि की मिट्टी के कण आकार में बड़े तथा स्पर्श में खुरदरे होते हैं । इनमें अंकुरणशक्ति अधिक होती है क्योंकि दो कण एक-दूसरे के साथ चिपके हुए नहीं रह पाते। इस प्रकार के कणों से निर्मित भूमि में जल सोखने की क्षमता तो अधिक होती है, लेकिन उसे रोक रखने की क्षमता नहीं होती। कणों के बीच अधिक खाली स्थान होने के कारण ऐसी भूमि में जल का अवशोषण व जड़ों की पकड़ कम होती है। इसमें रिक्त स्थानों की संख्या लगभग 33 प्रतिशत होती है। ऐसी भूमि में पतली तथा मोटी रेत की मात्रा क्रमशः 30 तथा 50 प्रतिशत होती है। यदि आपके विचन गार्डन में भूमि की मिट्टी ऐसी हो तो उसमें अधिक मात्रा में चिकनी मिट्टी मिलाने के पश्चात ही साग-सब्जियां लगानी चाहिएं।

    2. बलुई दोमट भूमि की मिट्टी बलुईभूमि की मिट्टी की अपेक्षा अधिक उपजाऊ होती है, क्योंकि इसके दो कणों के मध्य रिक्त स्थान कम होता है। इस भूमि की मिट्टी रिक्त स्थानों की संख्या 36 प्रतिशत होती है। इसके कण 0.05 से 0.1 मिलीमीटर आकार के होते हैं। इसे भी चिकनी मिट्टी के साथ मिलाकर प्रयोग में लिया जा सकता है।

    3. दोमट भूमि की मिट्टी हर प्रकार के उद्यान के लिए सर्वोत्तम रहती है, क्योंकि इसमें जल को रोके रखने तथा जड़ों को पूर्ण पोषक तत्व आदि पहुंचाने की पूर्ण क्षमता होती है। इसके कणों में रिक्त स्थानों की संख्या लगभग 45 प्रतिशत होती है तथा रन्ध्रों के मध्य उपस्थित वायु से जड़ें सरलता से ऊर्जा का निर्माण कर सकती हैं। इसके कणों का आकार गोल तथा माप 0.01 से 0.05 मिलीमीटर तक होता है।

    4. दोमट मटियार भूमि दोमट से भी अधिक उपजाऊ होती है, क्योंकि इसमें बालू 20 से 45 प्रतिशत मात्रा में उपस्थित रहती है। इसके कणों का आकार प्रायः गोल तथा माप 0.001 से 0.005 मिलीमीटर तक होता है। इसके दो कणों के मध्य अधिक स्थान भी नहीं होता, जिसके कारण इसमें जल संचय की क्षमता भी अधिक होती है। इसके रिक्त स्थानों की संख्या 48 प्रतिशत होती है।

    5. मटियार भूमि देखने में हल्की भूरी अथवा काली नजर आती है। इसमें पोषक तत्वों का अपूर्व भण्डार होता है। इसे अधिक समय तक सूखा नहीं रखना चाहिए, क्योंकि इससे मिट्टी जगह-जगह से तड़क जाती है व उसका तल बिगड़ जाता है। इसमें 20 से 22 प्रतिशत तक बालू की मात्रा होती है। चना, मटर व आलू आदि की फसल के लिए यह भूमि बहुत ही उपयुक्त होती है।

    6. चिकनी भूमि तालाब या झील की सतह पर पाए जाने वाली तथा काली व चिकनी होती है। जल के साथ मिलते ही इस भूमि की मिट्टी लसदार व मुलायम हो जाती है। इसका यह गुण रेत की मात्रा में कमी के कारण होता है। इसी कारण से इसमें जल सोखने की क्षमता कम होती है । उद्यान आदि के लिए इस प्रकार की भूमि सर्वथा अनुपयुक्त ही होती है। इसमें रन्ध्रकूपों की संख्या 54 प्रतिशत होती है तथा इसके कणों का माप 0.0001 से 0.00105 मिलीमीटर तक होता है।

    7. पथरीली भूमि में पथरीली अर्थात् कंकड़-पत्थरयुक्त मिट्टी होती है। वागवानी के लिए इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता। हां, राकरी बनाने में इसका प्रयोग किया जा सकता है।

    No comments